नई दिल्ली, 17 दिसंबर 2020. नौ वर्षीया की इला दुनिया की पहली इंसान है जिसके मृत्यु प्रमाण पत्र पर वायु प्रदूषण को उसकी मौत के कारणों में दर्ज (Air pollution recorded on death certificate as the cause of death) किया गया है। इससे यह सवाल मजबूती से खड़ा हो गया है कि क्या इस बच्ची की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हुई? यह मामला स्वास्थ्य, स्वच्छ हवा और जीवन जीने के उस अधिकार के बीच संबंधों की तरफ भी ध्यान खींचता है, जिसकी ब्रिटेन तथा अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून दोनों में ही गारंटी दी गई है। साथ ही यह मामला स्पष्ट करता है कि इला दुनिया के विभिन्न शहरों और ग्रामीण इलाकों में विकसित तथा विकासशील देशों में जहरीली हवा का दंश झेल रहे करोड़ों बच्चों की ही तरह है।
दुनिया की ऐसी पहली इंसान है इला किस्सी डेब्रा, जिसकी मौत के कारणों में वायु प्रदूषण
ब्रिटेन की एक अदालत ने इतिहास रचा है। उसने अपनी टिप्पणी में कहा है कि लंदन की एक अति व्यस्त सड़क के पास स्थित अपने मकान में अपनी मां के साथ रहने वाली 9 साल की इला किस्सी डेब्रा की मौत के कारणों में वायु प्रदूषण भी शामिल है। इला ब्रिटेन की और संभवत दुनिया की ऐसी पहली इंसान है, जिसकी मौत के कारणों में वायु प्रदूषण को भी शामिल किया गया है।
डब्ल्यूएचओ तथा यूरोपीय संघ द्वारा निर्धारित सीमाओं को पार कर गया था वायु प्रदूषण का स्तर
कोरोनर ने पाया है कि इला की मौत से 3 साल पहले की अवधि में उसके घर के आसपास वायु प्रदूषण का स्तर (Air pollution level) डब्ल्यूएचओ के पैमानों तथा यूरोपीय संघ द्वारा निर्धारित सीमाओं को पार कर गया था, जो इला की मौत का एक कारण बना। कोरोनर ने कहा कि इला के वायु प्रदूषण की चपेट में आने की मुख्य वजह वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण था।
कोरोनर का कहना है कि एनओ2 के स्तर में कमी लाने में विफलता जाहिर है। संभव है कि यह भी इला की मौत की एक वजह बनी हो। उसने यह भी माना है कि इला की मां को पूरी सूचना नहीं दिया जाना भी उसकी मौत का एक सबब हो सकता है।
Poor air quality severely affects every stage of children’s lives.
इस बारे में पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में सेंटर फॉर एनवायरमेंटल हेल्थ की उपनिदेशक डॉक्टर पूर्णिमा प्रभाकरण (Doctor poornima prabhakaran) ने कहा
“इला की मौत के मामले में हुए कानूनी परीक्षण के नतीजे साफ हवा में सांस लेने के अधिकार के लिए भविष्य में लड़ी जाने वाली लड़ाइयों के लिहाज से एक मिसाल पेश करेंगे। मानवाधिकार के साथ-साथ स्वास्थ्य सम्बन्धी परिपेक्ष्य में भी दुनिया भर की सरकारें का यह कर्तव्य है कि वे ऐसी नीतियां और वायु गुणवत्ता प्रबंधन संबंधी योजनाएं लागू करें, जिनसे नागरिकों खासतौर पर इला जैसे बच्चों और युवा पीढ़ी की सेहत को बचाया जा सके। वायु की खराब गुणवत्ता बच्चों की जिंदगी के हर चरण को बुरी तरह प्रभावित करती है, लिहाजा भावी पीढ़ी की उसके पूरे जीवन भर सुरक्षा किया जाना बेहद महत्वपूर्ण है।”
इंस्टीट्यूट ऑफ चेस्ट सर्जरी इन इंडिया के अध्यक्ष और लंग केयर फाउंडेशन के संस्थापक ट्रस्टी डॉक्टर अरविंद कुमार ने कहा
“किसी भी बच्चे को इला की तरह सांस लेने के लिए संघर्ष करते हुए नहीं मरना चाहिए। किसी माता पिता पर उस तरह की फिक्र का बोझ नहीं पड़ना चाहिए जैसा कि रोजामंड पर पड़ा। रोजामंड ने हर पल यह महसूस किया कि क्या उनकी बच्ची सांस ले पाएगी और क्या उन्हें उसे हर बार लेकर अस्पताल दौड़ना पड़ेगा। ब्रिटेन के कोरोनर ने वायु प्रदूषण को इला की मौत के एक कारण के तौर पर जाहिर करके भारत समेत दुनिया भर की सरकारों को यह जता दिया है कि जिंदगी जीने और साफ हवा में सांस लेने तथा स्वास्थ्य परक पर्यावरण में जीवन जीने के अधिकार की अदायगी सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी है। सरकारों को आगे आते हुए अपनी युवा पीढ़ी को उस मुसीबत से बचाना चाहिए जिसका इला ने सामना किया।”
अब इला के मृत्यु प्रमाण पत्र में लिखा जाएगा कि उसकी मौत निम्नलिखित कारणों से हुई:
1a) श्वसन प्रणाली का नाकाम होना, 1b) गंभीर दमा, 1c) वायु प्रदूषण
कोरोनर ने इला की एक तस्वीर का जिक्र किया जो उसकी 9 वीं सालगिरह से थोड़े ही समय पहले ली गई थी। इसे अदालती कार्यवाही के दौरान कोरोनर न्यायालय में रखा गया था। इस दौरान कहा गया
“यह तस्वीर बेहद चमकदार भूरी आंखों वाली बच्ची की है। उसके चेहरे पर दिख रही मुस्कान इस तस्वीर से कहीं ज्यादा बड़ी लगती है। मैंने इला के बारे में जो कुछ भी पढ़ा उससे उसका दृढ़ निश्चय साफ जाहिर होता है। हमें यहां तक लाने के लिए आपका (रोजामंड) धन्यवाद देने को हमारे पास अनेक कारण मौजूद हैं।”
इला की मां रोजामंड ने अदालती कार्यवाही के दौरान यह प्रमाण दिया और कहा कि उनकी बेटी गंभीर दमे और दौरों की चपेट में आने के बाद करीब 28 बार अस्पताल ले जाई गई। फरवरी 2013 में इला की मौत से कुछ घंटे पहले परिवार ने वैलेंटाइंस डे की शाम को एक साथ खाना खाया था। उसके बाद उन्होंने इला के साथ कुछ वक्त गुजारा था। उन्होंने कहा “मैंने उसे उस दिन बीथोवेन के प्रेम पत्र पढ़कर सुनाए थे। वे आखरी दस्तावेज थे जो मैंने उसके लिए पढ़े।”
इला की मां रोजामंड एडू किस्सी डेब्रा ने कहा
“यह एक लैंड मार्क केस है। सात साल की जद्दोजहद के बाद इला के मृत्यु प्रमाण पत्र में वायु प्रदूषण को उसकी मृत्यु के एक कारण के तौर पर दर्ज किया गया है। उम्मीद है कि इससे अनेक अन्य बच्चों की जिंदगी बच सकेगी। उन सभी का धन्यवाद जिन्होंने हमारा साथ दिया।”
कुछ घंटों के बाद इला उठी और उसे अपने अस्थमा पंप की जरूरत महसूस की। जागने पर उसे फिर से सांस लेने में दिक्कत महसूस हुई, जिसके बाद उसकी मां ने एंबुलेंस बुलाई और उसे लेवीशाम हॉस्पिटल ले गई जहां उसकी हालत और खराब होती गई।
उसकी मां ने कहा “मैंने कंसल्टेंट से बहुत मिन्नतें की। मैं जानती थी कि हम मुश्किल में हैं।” मगर वे उनकी बेटी को नहीं बचा सके।
रोजामंड ने अदालती सुनवाई के दौरान कहा “इस बार नहीं। इला को 15 फरवरी तडके 3:27 पर मृत घोषित कर दिया गया।”
दुनिया में 15 साल से कम उम्र के 93% बच्चे खराब हवा में सांस लेने को मजबूर हैं और शोधकर्ताओं ने पाया है कि वायु प्रदूषण मां के प्लेसेंटा में दाखिल हो सकता है और वह गर्भाशय में भ्रूण तक पहुंच बनाने की क्षमता भी रखता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के मुताबिक वर्ष 2016 में 600000 बच्चों की मौत खराब हवा के कारण उत्पन्न एक्यूट लोअर रेस्पिरेट्री संक्रमण की वजह से हुई। इस वक्त आधी दुनिया के पास सेहत के इस खतरे के समाधान के लिए जरूरी आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। वहीं, जिन देशों में वायु प्रदूषण संबंधी कानून बने हुए हैं वहां इनका लगातार उल्लंघन हो रहा है।
इससे पहले गवर्नर अर्नाल्ड श्वाजनेगर ने रोजामंड के प्रति समर्थन जाहिर किया था और परिवार ने उन्हें ‘नायक’ का खिताब दिया था।
What is the whole case of Ella Kissi Debrah‘s death
गौर तलब है कि इला किस्सी डेब्रा की मौत 3 साल तक पड़े दौरों और सांस की समस्या को लेकर 27 बार अस्पताल जाने के बाद फरवरी 2013 में हुई। वर्ष 2014 में इस मामले में अदालती कार्रवाई शुरू हुई जिसका केंद्र इला की चिकित्सीय देखभाल पर था।
अदालत ने कहा
“इला की मौत दमे के गंभीर दौरे की वजह से श्वसन प्रणाली नाकाम हो जाने के कारण हुई।”
कई सालों के अभियान के बाद दिसंबर 2019 में इला के परिवार की लीगल टीम वायु प्रदूषण के स्तरों को लेकर सामने आए नए सबूतों के आधार पर इस मामले को दोबारा खोलने के सिलसिले में हाई कोर्ट में अपनी याचिका दाखिल करने में कामयाब रही।
विश्व स्वास्थ्य संगठन में पर्यावरण जलवायु परिवर्तन तथा स्वास्थ्य शाखा की निदेशक डॉक्टर मारिया नीरा ने कहा
“रोजामंड ने अपनी बेटी को गौरवान्वित किया है और पूरी दुनिया के सामने मिसाल पेश की है कि वायु प्रदूषण इला की मौत का वास्तविक अपराधी है। उनकी बहादुरी भरी मुहिम एक खूबसूरत इंसानी चेहरे को उस विध्वंस की तरफ ले गयी है, वायु प्रदूषण के कारण जिसका खतरा पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों की जिंदगी पर मंडरा रहा है। किसी भी शहर का मेयर या सरकार का कोई मंत्री यह नहीं कह सकता कि वह इस खतरे के बारे में नहीं जानता। हम सभी को अपने बच्चों और खुद अपने वास्ते साफ हवा के लिए संघर्ष करने की जरूरत है।”
हाईकोर्ट में हुई अदालती कार्यवाही 30 नवंबर को शुरू हुई और 10 दिनों तक चली। इस दौरान इस बात पर गौर किया गया कि इला की मौत में वायु प्रदूषण कोई कारण है या फिर उसने इसमें योगदान किया। साथ ही उस वक्त वायु प्रदूषण के स्तर को कैसे मापा गया। अदालती कार्यवाही के दौरान सामने आए मुद्दों में यह भी शामिल था कि वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कौन से कदम उठाए गए और जनता को प्रदूषण के स्तरों, उनके कारण उत्पन्न होने वाले खतरों तथा वायु प्रदूषण के संपर्क में कमी लाने के उपायों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई गई या नहीं।
इला की मां रोजामंड स्वच्छ वायु संबंधी मुहिम की एक अहम आवाज बन गई हैं। उन्होंने एक फाउंडेशन (द इला रॉबर्टा फैमिली फाउंडेशन) बनाया है। इसका उद्देश्य दमे से जूझ रहे बच्चों की जिंदगी को बनाना और सेहत तथा वायु की गुणवत्ता के सिलसिले में विश्व स्वास्थ्य संगठन का पैरोकार बनना है। अनेक सरकारी विभाग तथा लंदन के मेयर इस मामले में दिलचस्पी रखने वालों के तौर पर चिह्नित किए गए हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि वायुमंडलीय वायु प्रदूषण के कारण पूरी दुनिया में 4200000 लोगों की मौत होती है। वही खराब चूल्हों और ईंधन के इस्तेमाल की वजह से घरों में फैलने वाले प्रदूषण की जद में आकर 38 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। दुनिया की 91% आबादी ऐसे इलाकों में रहती है, जहां डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित पैमानों से कहीं ज्यादा वायु प्रदूषण है।
मानव अधिकार तथा पर्यावरण को लेकर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत डेविड आर बॉयड ने कहा
“कोरोनर का निर्णय अंतरराष्ट्रीय कानूनों में पहले से ही निहित बातों की पुष्टि करता है। जीवन जीने के हमारे अधिकार, खासकर सबसे कम उम्र और इला ऐसे सर्वाधिक जोखिम वाले नागरिकों के स्वास्थ्य और सेहतमंद पर्यावरण की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है। इसके बावजूद दुनिया के 10 में से 9 बच्चे अभी घर के अंदर और उसके बाहर जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं और उनमें से हर साल 600000 की मौत हो जाती है, क्योंकि उनकी सरकारें साफ हवा जैसे मूलभूत मौलिक अधिकार प्रदान करने में नाकाम साबित हुई हैं। इस बात की पहचान करना कि इला की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हुई है, अनेक बच्चे और भावी पीढ़ियां मौत से बचाई जा सकेंगी क्योंकि इससे सरकारों पर इस खामोश महामारी से निपटने का दबाव बनेगा।”
बांग्लादेश एनवायरमेंटल लॉयर्स एसोसिएशन की मुख्य अधिशासी और उच्चतम न्यायालय की वकील सैयदा रिजवाना हसन ने कहा
“इला की मौत हमें यह याद दिलाती है कि साफ हवा हमारी सेहत की बुनियाद है और हम साफ हवा की गारंटी दिए बगैर एक स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं कर सकते। इला के मामले में हुई अदालती कार्यवाही से ऐसे करोड़ों बच्चों की जिंदगी बचाने में मदद मिलेगी जो इला की ही तरह गंदी हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। साथ ही इससे सच्चे मायनों में एक ऐसे समाज का उभार होगा जिसमें सरकारें अपने हर नागरिक को जीवन जीने और साफ हवा का अधिकार दिलाने की गारंटी देंगी।”
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