Who is Father Stan Swamy? |
Father Stan Swamy biography in Hindi. | फादर स्टेन स्वामी की जीवनी हिंदी में
फादर स्टेन स्वामी 83 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिनकी हाल ही में एनआईए ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तारी की है। आइए जानते हैं कि आखिर फादर स्टेन स्वामी कौन हैं, जिनकी गिरफ्तारी पर झारखंड में उबाल आया हुआ है और स्वयं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी की निंदा की है। झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह फादर स्टेन स्वामी का जीवन वृतांत बता रहे हैं –
फादर स्टेन स्वामी का जन्म 1937 में तमिलनाडु के त्रिची (Trichy of Tamil Nadu) में हुआ था। वे अपनी युवा उम्र में जेसुइट बने और 1957 में उन्होंने पूर्ण रूप से वंचितों और गरीबों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और तब से अपना जीवन आदिवासी, दलित और वंचितों के अधिकारों पर काम करने (Work on the rights of tribal, dalit and deprived) में बिताया है।
फादर स्टेन स्वामी 1965 में पहली बार झारखंड के चाईबासा क्षेत्र में आये और तब से झारखंड के ही बन गये। कुछ सालों बाद उन्होंने मनीला (फिलिपींस) में समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (Postgraduate in sociology) प्राप्त किया। इसके बाद वे वापस आकर कोल्हान के ‘हो’ आदिवासियों के साथ गांव में रहे, जहां वे आदिवासियों की जीवनदृष्टि व उनकी समस्याओं से अवगत हुए।
सामाजिक व्यवस्था और उसके आकलन को बेहतर समझने के लिए फादर 1974 में बेल्जियम पढ़ने चले गये, जहां उन्हें पीएचडी करने का मौका मिला, लेकिन सामाजिक बदलाव को प्राथमिकता देते हुए वे भारत वापस लौट आए।
अगले 15 सालों तक फादर स्टेन स्वामी ने बेंगलुरू के प्रसिद्ध शोध संस्थान इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट (आईएसआई) में काम किया। यहां उन्होंने सैकड़ों युवाओं को वैज्ञानिक रूप से सामाजिक समस्याओं के आकलन पर प्रशिक्षित किया और जमीनी स्तर पर लोगों को मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया।
फादर स्टेन स्वामी 1991 में पूर्ण रूप से झारखंड आ गये।
चाईबासा में लगभग एक दशक तक उन्होंने आदिवासी अधिकारों पर काम किया और फिर रांची में ‘बगाईचा’ की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ‘बगाईचा’ सामाजिक कार्यकर्ताओं, युवाओं और आंदोलनों के सहयोग और विभिन्न जन मुद्दों पर शोध का एक केन्द्र बना।
पिछले तीन दशकों से फादर स्टेन स्वामी जल, जंगल व जमीन पर आदिवासियों के संवैधानिक हक के लिए अडिग रहे हैं। उन्होंने विस्थापन, कॉरपोरेट द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की लूट और विचाराधीन कैदियों की स्थिति पर बेहद शोधपरक काम किया है। वे 2016 में झारखंड के भाजपा सरकार द्वारा सीएनटी-एसपीटी कानून एवं भूमि अधिग्रहण कानून में हुए जनविरोधी संशोधनों को लगातार मुखरता से विरोध करते आए हैं।
फादर स्टेन स्वामी ने भाजपाई रघुवर दास सरकार द्वारा गांव की जमीन को लैंड बैंक में डालकर कॉरपोरेट के हवाले करने की नीति की भी जमकर मुखालिफत की थी।
वे लगातार संविधान की 5वीं अनुसूची एवं पेसा कानून के क्रियान्वयन के लिए भी आवाज उठाते रहे हैं।
इन सभी मुद्दे से जुड़े विभिन्न जनांदोलनों एवं अभियानों में फादर स्टेन स्वामी ने अपना पूरा सहयोग दिया। आदिवासी-मूलवासियों की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था ग्रामसभा में उनका पूर्ण विश्वास है। उन्होंने भूख से मौत, आधार कार्ड की समस्याएं व सांप्रदायिक हिंसा जैसे मुद्दों को भी मुखरता से उठाया है।
देश में विस्थापन के खिलाफ जब ‘विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन’ नामक संगठन का निर्माण हुआ, तो इसके संस्थापक सदस्यों में से ये भी थे।
माओवादी के नाम पर जेल में बंद आदिवासी-मूलवासियों पर भी इनका काम काबिल-ए-तारीफ था, इन विचाराधीन बंदियों की रिहाई के लिए छेड़े गये अभियान में भी इन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया।
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