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कोरोना के कारण भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या में हो सकती है 15 करोड़ तक की वृद्धि

Due to corona, the number of starvation victims may increase further by 150 million.

विश्व खाद्य दिवस-2020 पर विशेष | Special on World Food Day -2020

बायो-फोर्टिफाइड फसलों से पोषण सुनिश्चित करेगा भारत

नई दिल्ली, 16 अक्तूबर : इन्सान की तीन बुनियादी जरूरतों रोटी, कपड़ा और मकान के अनुक्रम में रोटी का पहले पायदान पर रहना ही इसके सर्वोपरि महत्व का द्योतक है। भोजन के इसी महत्व को रेखांकित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र वर्ष 1980 से हर साल 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस का आयोजन करता आया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत इसी दिन वर्ष 1945 में खाद्य एवं कृषि संगठन- Food and Agriculture Organization (एफएओ) की स्थापना हुई थी, जिसके 75 वर्ष पूरे हो गए हैं। इसी उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एफएओ को समर्पित 75 रुपये का स्मृति सिक्का जारी किया है। इस अवसर पर आठ फसलों की 17 बायो-फोर्टिफाइड (जैव-दृढ़) किस्में राष्ट्र को समर्पित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ कुपोषण को जड़ से समाप्त करने के प्रति भी भारत की प्रतिबद्धता दोहरायी है।

कोरोना वैश्विक महामारी से उपजी परिस्थितियों में सबके लिए भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। आशंका जतायी जा रही है कि कोरोना के कारण भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या में और 15 करोड़ तक की वृद्धि हो सकती है। इससे वर्ष 2030 तक दुनिया को भूख-मुक्त करने का संयुक्त राष्ट्र का लक्ष्य भी प्रभावित हो सकता है। स्पष्ट है कि कोरोना ने तमाम अन्य चुनौतियों के साथ ही खाद्य मोर्चे पर भी हालात मुश्किल बना दिए हैं। शायद यही कारण है कि इस वर्ष शांति का नोबेल पुरस्कार भी संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम को मिला है।

भारत के लिए यह कम बड़ी उपलब्धि नहीं है कि एक समय अमेरिका से आयातित गेहूं पर निर्भर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ी आबादी वाला देश अब खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाने के साथ-साथ वैश्विक खाद्य श्रृंखला को भी सहारा दे रहा है।

MS Swaminathan has been called the “Father of Green Revolution in India”.

उल्लेखनीय है कि आज भारत गेहूं, धान, गन्ना और दालों सहित तमाम कृषि जिंसों का दुनिया में प्रमुख उत्पादक देश बन चुका है। इसमें भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने अहम भूमिका निभायी है। देश में हरित क्रांति के जनक डॉ. एमएस स्वामीनाथन के नाम से भला कौन अपरिचित होगा, जिनके  प्रयत्न से (Impact of green revolution in india) भारतीय कृषि का परिदृश्य ही बदल गया। दुनिया के क्षेत्रफल का दो प्रतिशत भू-भाग रखने वाला भारत आज न केवल अपने यहां निवास करने वाली विश्व की लगभग 16 प्रतिशत आबादी का भरण-पोषण कर रहा है, बल्कि दुनिया में तमाम उत्पादों की आपूर्ति कर वैश्विक खाद्य तंत्र पर दबाव को घटाने में भी अहम योगदान दे रहा है।

बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ खेती की घटती जोतों की चुनौती के बाद भी यदि कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई है तो इसका पूरा श्रेय देश के कृषि वैज्ञानिकों को जाता है। विश्व खाद्य दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने धान, गेहूं, मक्का, बाजरा, सरसों और मूंगफली की जिन 17 बायो-फोर्टिफाइड किस्मों को राष्ट्र के लिए समर्पित किया है, वह हमारे वैज्ञानिकों की मेहनत का ही परिणाम है। बायो-फोर्टिफिकेशन एक वैज्ञानिक पद्धति है, जिसके द्वारा आयरन, विटामिन, जिंक आदि पोषक तत्वों को मूल फसलें उगाते समय ही उनमें जोड़ दिया जाता है।

बायो-फोर्टिफिकेशन क्या है | What is Bio-Fortification

बायो-फोर्टिफिकेशन या जैव-सुदृढ़ीकरण ऐसे पौधों की ब्रीडिंग है, जो मिट्टी से अधिक मात्रा में आयरन और जिंक जैसे आवश्यक खनिज ग्रहण कर सकें। भारत के संदर्भ में बायो-फोर्टिफाइड फसल किस्मों के विकास और संवर्द्धन का प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण है। कृषि उपज बढ़ने के साथ-साथ आज भारत के सामने ‘छिपी हुई भूख’ यानी कुपोषण से लड़ने की चुनौती भी खड़ी है। कैलोरी, प्रोटीन और वसा जैसे पोषक तत्वों प्रति व्यक्ति उपलब्धता के मामले में भारत विश्व की पिछली पंक्ति के देशों में आता है। ऐसे में, बायो-फोर्टिफाइड खाद्यान्नों में भारत विशेष संभावनाएं तलाश रहा है। दशकों तक शोध के उपरांत भारत ने वर्ष 2012 में अपनी पहली बायो-फोर्टिफाइड बाजरे की किस्म ‘धनशक्ति’ का उत्पादन और वितरण शुरू किया।

उल्लेखनीय है कि बाजरे की यह किस्म बच्चों में आयरन की आवश्यकता को शत-प्रतिशत पूरी करने में सक्षम है।  

आठ वर्षों की छोटी अवधि में कृषि वैज्ञानिकों ने बाजरे के अतिरिक्त चावल, गेहूं, दलहन, तिलहन, फल और सब्जियों की 17 बायो-फर्टिफाइड किस्में सामने लाकर भारत को खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण-सुरक्षा सुनिश्चित करने के मार्ग पर अग्रसर कर दिया है।

(इंडिया साइंस वायर)

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